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क़ैद

  • Writer: Anilesh Kumar
    Anilesh Kumar
  • Mar 8
  • 1 min read

एक टूटा हुआ तारा चुपचाप जा रहा है

उसे ख़बर है कि मुझे कोई ख़बर नहीं

ये आँखें दीवार को छत समझती हैं

तारों भरे आकाश पर मेरी नज़र नहीं

बिजली की रोशनी है दिन भर, अब कहीं कोई पहर नहीं

नज़र एक रोज़ धूप पर पड़ी तो ख्याल आया

ऊंची इमारतों में क़ैद था मैं...

 
 
 

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