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सज़ा

  • Writer: Anilesh Kumar
    Anilesh Kumar
  • Feb 28
  • 1 min read

सज़ा एक उन्हीं को तो नहीं मिलती जो हकदार होते हैं

गुनहगार न होना किसी गुनाह से कम तो नहीं


अपने साये से थोड़ा फासला रखिए, रोशनी तेज़ हो तो ऊँचे कद की गलतफ़हमी हो जाती है


लौटिए किसी दिन खुद की तरफ

ज़माने से थककर तो ज़माना भी बदल गया

 
 
 

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